आज पूरा देश गोकुल के नंदलाल का जन्मदिन बड़े हर्ष और उल्लास के साथ माना रहा है.
श्री कृष्ण जो अपने मुख से सारा ब्रह्मांड दिखा सकते हैं तो वहीं अपने प्रिय मित्र सुदामा की दोस्ती पूरा ब्रह्मांड भुला सकते हैं, यही वह कृष्ण है जो कंस को मारकर धर्म एवं न्याय को जीत दिलाते हैं और ये ही वो कृष्ण है जो अपनी नटखट शैतानीयों से गोपियों को सताते हैं. श्री कृष्ण वह है जो महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का पाठ पढ़ाते हैं तो वहीं अर्जुन को युद्ध नहीं युद्ध नीति का महत्व भी समझाते हैं. वे स्वयं ही गीता में बताते हैं, “मैं सब कुछ हूं, मैं सब में हूं. सब मुझ में है और मुझसे ही सब कुछ.”
श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. श्री कृष्ण ने ना केवल राक्षसों का वध किया बल्कि कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध में के दौरान अर्जुन को गीता का पाठ पढ़ाया. हिंदू धर्म में गीता को सर्वश्रेष्ठ माना गया है और एक पाठ को बेहद लाभकारी एवं फलकारी कहा गया है. गीता में श्री कृष्ण द्वारा कही गई बातों का पालन कर और गीता के सिद्धांतों को अपने जीवन में उतार कर कोई भी मोक्ष की राह पर अग्रसर हो सकता है और यही कारण है कि भगवान कृष्ण को मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है. वृंदावन का खाना ना केवल देश बल्कि विदेशों में भी बेहद पूजनीय है. विदेशों में रहने वाले कृष्ण नाम और कृष्ण प्रेम हजारों मील दूर से भारत आते हैं और कृष्ण में खुद को लीन कर अपने आप में ही अनंत सुख का अनुभव करते हैं.
कृष्ण का इतिहास.
जैसा कि हम सब सुनते और पढ़ते हैं आए हैं कि कृष्णा को जन्म देने वाली देवकी थीं जो अहंकारी एवं दुराचारी कंस की बहन थी. कहा जाता है कि कंस जब अपनी बहन देवकी का विवाह संपन्न कर वापस महल लौट रहा था तब ही एक आकाशवाणी हुई कि हे कंस, तेरी इस प्रिय बहन के गर्भ से जन्म लेने वाली आठवीं संतान ही तेरी मृत्यु का कारण बनेगी. बस फिर क्या था यह सुनने के बाद दुष्ट कंस ने अपनी बहन दिव्यांश के पति वासुदेव को कारागार में डाल दिया और इसके बाद जैसे ही देवकी किसी बच्चे को जन्म देती कंस उसे तुरंत जान से मार देता था.
परंतु जब देवकी के आठवें संतान के जन्म का समय आया तो भगवान विष्णु की माया से कारागार के सभी ताले टूट गए और भगवान श्री कृष्ण के पिता वासुदेव उन्हें भारी बारिश और तूफान के बीच यमुना नदी पार कर मथुरा में नन्द बाबा के महल में छोड़ कर चले गए। नन्द बाबा के घर यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं आदि पराशक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा से जेल में ले आए थे। कन्या जो कि एक माया का अवतार थीं, को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए. जब कंस ने उस कन्या को देखा और गोद में लेकर उसे मारने की इच्छा से जमीन पर फेंका तो नीचे फेंकते ही वो कन्या हवा में उछल गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर बोली कि कंस तेरा काल यहां से जा चुका है और वही तेरा अंत करेगा. ऐसा कहकर अंत में वह भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई.
कंस ने पहले तो पता लगाया कि आखिर वो बालक है कौन और जब कंस को पता चला कि वो और कोई नहीं बल्कि कृष्ण है तो कंस ने उसे मारने की बहुत कोशिश की पर सभी नाकाम रही. कुछ समय बाद आकाशवाणी के अनुसार ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के महल आकर वहीं उसका अंत किया.
जन्माष्टमी के व्रत का महत्व
कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का महत्व बहुत अधिक है और सभी वैष्णव जन्माष्टमी का व्रत करते हैं। हमारे शास्त्रों में जन्माष्टमी को व्रतराज कहा गया है यानी यह अन्य सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ व्रत माना गया है। जन्माष्टमी के दिन व्रत करने वाले लोग पुत्र, संतान, मोक्ष और भगवद् प्राप्ति के लिए व्रत करते हैं. लोगों का ऐसा मानना है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि होती है और दीर्घायु का वरदान भी प्राप्त होता है. इस व्रत को करने से भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भी बढ़ती है. हमारे पूर्वजों का ऐसा मानना था कि जन्माष्टमी का व्रत करने से अनेकों व्रतों का फल मिलता है यानी यहां एक व्रत सौ व्रत के बराबर है और जिस कारण ही इसे महाव्रत का नाम दिया गया है. यह व्रत अन्य व्रतों के समान ही है और श्रद्धा अनुसार कोई भी स्त्री या पुरुष इस व्रत को कर सकता है.
आज भी वृंदावन में आते हैं श्री कृष्ण
भगवान श्री कृष्ण का मथुरा वृंदावन से जो जुड़ा हो रहा है उसे किसी साक्ष्य की जरूरत नहीं है और इसमें किसी को कोई भी दो राय नहीं है. आज भी मथुरा वृंदावन पहुंच कर आप श्री कृष्ण को बेहद करीब से अनुभव कर सकते हैं और मथुरा वृंदावन की मिट्टी में आप उनको महसूस कर सकते हैं. मन वृंदावन मंदिर के आसपास रहने वाले लोगों की माने तो हर रात श्री कृष्ण अर्जुन की गोपियां मंदिर में आते हैं. लोगों का दावा है कि उन्होंने मध्य रात्रि के समय घुंघरू की आवाज सुनी है हंसने खेलने की आवाज सुननी है और इस विषय से जुड़े अलग-अलग अनुभव उनके साथ हुए हैं. मंदिर के पुजारी भी स्वयं इस बात को का साक्ष्य दुनिया के सामने प्रकट करते आए हैं कि कैसे रात में उनके द्वारा रखे गए सजावट के सामान मंदिर के अंदर विक्रय पाए जाते हैं तो वहीं पान मिठाई आदि अपने आप खत्म हो जाती है या फिर आधी रह जाती है. कुछ लोगों का यहां तक दावा है कि जिसने भी मंदिर में रात के वक्त रुकने की कोशिश की वह जिंदा वापस नहीं लौटा और यही कारण है कि आज भी मंदिर में रात के समय कोई नहीं रहता. मंदिर व प्रशासन के लोग खुद लोगों को मंदिर से बाहर निकाल कर मंदिर को पूरी तरह बंद करके घर जाते हैं. लोगों का मानना है कि श्री कृष्ण ने गोपियों और राधा रानी के साथ आकर मंदिर में रास रचाते हैं. इन सब बातों में कितनी सच्चाई है यह कहना कठिन है पर हां लोगों का ऐसा ही मानना है और जहां तक बात है मंदिर में रात के समय ना रुकने की तो यहां बिल्कुल सच है और इस पर मीडिया खुद रिपोर्टिंग भी कर चुका है. बाकी हम तो यही कहेंगे यह सारी श्री कृष्ण की लीलाओं में से एक है. हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की!