हम आये दिन जीडीपी को लेकर नई नई बातें सुनते रहते हैं, की आज GDP देश की गिरी तो किसी दिन बढ़ी. लेकिन क्या आपको मालूम है की इस GDP नाम की चीज की आपकी जिंदगी में काफी महत्वता है. अगर नहीं तो हम बताते हैं. आज जानेंगे की कैसे GDP का गिरना एक आम इंसान के लिए नुकसानदायक है.
क्या है जीडीपी?
ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को कहते हैं. जीडीपी किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे ज़रूरी पैमाना है. जीडीपी किसी ख़ास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल क़ीमत है. भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही आधार पर होती है. ध्यान देने वाली बात ये है कि ये उत्पादन या सेवाएं देश के भीतर ही होनी चाहिए.
भारत में कृषि, उद्योग और सर्विसेज़ यानी सेवा तीन प्रमुख घटक हैं जिनमें उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर जीडीपी दर होती है.
ये आंकड़ा देश की आर्थिक तरक्की का संकेत देता है. आसान शब्दों में, अगर जीडीपी का आंकड़ा बढ़ा है तो आर्थिक विकास दर बढ़ी है और अगर ये पिछले तिमाही के मुक़ाबले कम है तो देश की माली हालत में गिरावट का रुख़ है.
माना जाता है कि भारत जैसे कम और मध्यम आमदनी वाले देश के लिए साल दर साल अधिक जीडीपी ग्रोथ हासिल करना ज़रूरी है ताकि देश की बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके.
जीडीपी से एक तय अवधि में देश के आर्थिक विकास और ग्रोथ का पता चलता है.
आम जनता के लिए यह क्यों अहम है?
आम जनता के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार और लोगों के लिए फ़ैसले करने का एक अहम फ़ैक्टर साबित होता है.
अगर जीडीपी बढ़ रही है, तो इसका मतलब यह है कि देश आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में अच्छा काम कर रहा है और सरकारी नीतियाँ ज़मीनी स्तर पर प्रभावी साबित हो रही हैं और देश सही दिशा में जा रहा है.
अगर जीडीपी सुस्त हो रही है या निगेटिव दायरे में जा रही है, तो इसका मतलब यह है कि सरकार को अपनी नीतियों पर काम करने की ज़रूरत है ताकि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मदद की जा सके.
सरकार के अलावा कारोबारी, स्टॉक मार्केट इनवेस्टर और अलग-अलग नीति निर्धारक जीडीपी डेटा का इस्तेमाल सही फ़ैसले करने में करते हैं.
जीडीपी अभी भी पूरी तस्वीर नहीं है
हालाँकि, जीडीपी में कई सेक्टरों को कवर किया जाता है ताकि अर्थव्यवस्था की ग्रोथ का आकलन किया जा सके. लेकिन यह अभी भी हर चीज़ को कवर नहीं करती है.
विशेषज्ञों का मानना है कि जीडीपी डेटा में असंगठित क्षेत्र की स्थिति का पता नहीं चलता है.
वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफे़सर अरुण कुमार कहते हैं, “जीडीपी डेटा में असंगठित सेक्टर को शामिल नहीं किया जाता है जो देश के 94 फ़ीसदी रोज़गार का उत्तरदायित्व उठाता है.”
अरुण कुमार कहते हैं, “अगर जीडीपी निगेटिव दायरे में आ जाती है तो इसका मतलब है कि असगंठित क्षेत्र का प्रदर्शन संगठित सेक्टर के मुक़ाबले और ज़्यादा बुरा है.”
ऐसे में अगर जीडीपी ग्रोथ 10 से 15 फ़ीसदी के क़रीब रहती है, तो इसका मतलब है कि असंगठित क्षेत्र की ग्रोथ 20 से 30 फ़ीसदी के बीच होगी.
सीधे शब्दों में जीडीपी के आँकड़े दिखाते हैं कि संगठित क्षेत्र का प्रदर्शन कैसा है, लेकिन यह पूरी तरह से असंगठित क्षेत्र की उपेक्षा करता है, जिसमें देश की ग़रीब आबादी आती है.
कई एजेंसियाँ और विशेषज्ञ कह रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2021-22 में चार से 15 फ़ीसदी तक कमज़ोर हो सकती है.
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने यह कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था नकारात्मक दायरे में जाएगी. हालाँकि आरबीआई ने यह नहीं बताया है कि जीडीपी में कितनी गिरावट आएगी.