Sex जिसका ज़िक्र पुराणों में तो कहीं नहीं है लेकिन दशकों पहले बने मंदिरों की दीवारों में दिखता है. आज कुछ लोगों के सामने Sex कहने का सीधा अर्थ है कि आप कुछ ज़्यादा ही मॉडर्न है और अगर सामने रिश्तेदार या माँ पापा हो तो शायद बदतमीज़ भी. तो चलिए आज इसिपर छोटा सा लेख हो जाए।

बीती रात मन में यूँही ख़याल आया की क्यूँ न आज थोड़ा मंदिरों के बारे में पढ़ा जाए तो बस यूँही दुनिया जहान के मंदिरों को अपने Iphone के, जी हाँ थोड़ा सा advance, तो हमारी जेनरेशन भी है ही फिर बात टेक्नॉलजी की ही क्यूँ न हो. तो इसी iphone पर मैंने मंदिरों के बारे में google करना शुरू किया. एक के बाद दूसरा लिंक और दूसरे के बाद तीसरा और आख़िरकार शायद मुझे मेरे interest की चीज़ मिल गयी थी.

ऐसे तो मैंने कई बार मंदिरों के बाहर बनी ये नग्न मूर्तियों की तस्वीर देखी थी पर कभी इतना गौर नहीं फ़रमाया. ये पहली बार था शायद. मैंने जानना चाहा कि जहां आज एक लड़का लड़की मंदिर में गले नहीं मिल सकते वहाँ इतनी ‘अभद्र’ चीजें कैसे? थोड़ा और रीसर्च करने पर पता चला की ये कलाकृतियां इसीलिए मंदिर की दीवारों पर उकेरी जाती थीं ताकि जब भी कोई मंदिर में प्रवेश करे तो उसे याद रहे कि ऐसे सभी विचार मंदिर के बाहर ही छोड़के आने है. हालाँकि मैं इस बात से थोड़ी, नहीं, दरअसल काफ़ी ज़्यादा असंतुष्ट थी क्यूँकि अगर मंदिर में जाने से पहले अगर मुझे ये चीजें दिखायीं जाएँ तो मेरे दिमाग़ से निकलने की वजाए ये चीजें ज़्यादा मेरे बुद्धि के अंदर घुमेंगी. तो असंतुष्ट मन ने हर बार की तरह थोड़ा और रीसर्च करने का सोचा.

थोड़ा वक्त लगा लेकिन फिर कुछ संतुष्टि भरे जवाब मिलने लगे थे, पूराने लोगों और साहित्य की किताबों की मानें तो ये sculptures इसीलिए मंदिरों की दीवारों पर उकेरे जाते थे ताकि लोग इन्हें देखकर कुछ सीख पाएँ, हालाँकि उस वक्त भी शर्म तो रही होगी इसीलिए शायद बोलकर समझाने की वजाए ये तरीक़ा निकाला गया. अब आप सोच रहे होंगे की आख़िर मंदिर ही क्यूँ, उस वक्त hangout करने के लिए cafes या मूवी दिखाने के लिए मल्टीप्लेक्स तो थे नहीं इसीलिए मंदिरों को चुना गया क्यूँकि यहाँ सबसे ज़्यादा लोग आते थे.

इसिके साथ ये भी कहा जाता है की उस वक्त तक संभोग यनिकी की sex को एक बेहद पवित्र चीज़ माना जाता था क्यूँकि ये इस धरती पर एक नई ज़िंदगी का स्त्रोत है. कभी कभी सच में लगता है कि हमसे कही ज़्यादा समझदार हमारे पूर्वज रहे होंगे, उन्होंने हर चीज़ को इतना तूल न देकर प्रथ्वी के नियमों को बड़े ही सम्मान से अपनाया. पता नही कितने लोग मुझसे सहमत होंगे लेकिन सच में हम भले कितने भी ADVANCE क्यूँ ना हो जाएँ, हमारी सोच वही ‘पूरानी’, नहीं नहीं ‘नीच’ ही रहेगी.

और हाँ, एक और बात इस लेख के बाद मैं सादरपूर्वक आपके मुँह या मन से मेरे लिए निकला वो बेहद खूबसूरत शब्द ‘बदतमीज़’ स्वीकारती हूँ.

लेख: सुकन्या जादौन

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