Fatehpur : देश भक्ति का दम भरते हुए शहीद की शहादत पर सलाम करने वालें जनप्रतिनिधियों और अफसरों के प्रति दुखी परिवारों में गहरी नाराजगी हैं. दुखों के दौर से गुजर रहे शहीदों के परिवार दशकों बाद भी बदहाली की गिरफ्त में हैं. अभी भी गांवों का विकास शून्य हैं. शहीद स्थल में पहुँचने के लिए ठीक ठाक रास्ता तक नहीं हैं. उपेक्षा के कारण गुमनामी की गिरफ्त में आए परिवार आज भी टकटकी लगाए हुए हैं, सीमा पर शहीद हुए अपनों के नाम पर शहीद स्थल बने, ताकि राष्ट्रीय पर्वो पर वह शहीदों की प्रतिमाओं पर श्रद्धांजलि के फूल चढ़ा सकें.

शहीद छेदा सिंह (Chheda singh) की पत्नी अनारकली देवी (Anarkali devi) ने बताया कि भारत पाक युद्ध में पति के शहीद हुए 50 साल बीत गए. गांव में ना ही शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया, न ही पति के नाम पर एक सड़क बनी. शुरुआती दौर में प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने भरोसा देते हुए शहीद के नाम से गांव के कायाकल्प कराने की बात कही थी लेकिन र्दुभाग्य हैं सड़क नहीं होने के कारण आज भी घर के सामने कीचड़ हैं. जहां से बारिश में सुरक्षित निकलना मुश्किल हैं.

दलाबला निवासी शहीद हनुमाल बली सिंह (Hanuman bli singh) के बेटे रामेश्वर सिंह की भी ऐसी ही पीड़ा हैं. उन्होंने बताया कि उम्मीदों को लिए वह बचपन से बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच गए लेकिन शहीद स्मारक, गांव का विकास समेत तमाम आश्वासन कोरे ही साबित हुए हैं.

डुडरा के शहीद छत्रपाल सिंह (Chhatrpal singh) की पत्नी इंदरा देवी कई बार अफसरों की दहलीज पर पहुंच कर दिए गए आश्वासनों की याद दिलाई लेकिन जिम्मेदारों की संवेदना नहीं जागी. पत्नी का आरोप है कि पति की शहादत पर गुमनामी हाथ लगेंगी ऐसा भरोसा नहीं था.

रखेलपर मजरे संवत की श्याम दुलारी (Shyam dulari) को देश के लिए शहीद पति पर गर्व हैं लेकिन प्रशासन, परिवारीजनों और प्रतिनिधियों के उपेक्षापूर्ण रवैएं से वह बेहद दुखी हैं.

लेख – टीम वाच इंडिया नाउ

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