द्वितीय विश्वयुद्ध (Second World War) के बाद दुनिया दो हिस्सों में बट गई थी जिसमें एक हिस्सा अमेरिका (US) और उसके साथियों का था जबकि दूसरा हिसार सोवियत संघ और उनके साथियों का था. वित्तीय विश्वयुद्ध के बाद जहां कुछ देशों के संबंध मधुर हो गए तो वही कुछ देशों के रिश्तो में कड़वाहट आ गई. आज हर दूसरे देश की किसी दूसरे देश के साथ नहीं बनती या उनमें आपसी मतभेद बढ़ते-बढ़ते बहुत बढ़ गया है. यही भी यही कारण है कि हम खबरों में किसी न किसी देशों के मतभेद के बारे में सुनते व पढ़ते रहते हैं. पश्चिमी और मध्य एशियाई देश इसके सबसे प्रबल और प्रमुख उदाहरण में से एक हैं. पश्चिमी एशियाई देशों में इजराइल (Israel) एक ऐसा देश है जिसके अपने पड़ोसियों से कुछ खास अच्छे संबंध नहीं रहे हैं. चाहे वो संयुक्त अरब अमीरात हो, ईरान हो, बहरीन हो, ओमान हो या फिर इजराइल का सबसे बड़ा दुश्मन फलस्तीन हो. इजराइल का अपने पड़ोसी देशों से 36 का आंकड़ा है और ऐसा नहीं है कि यह परिस्थितियां अब सामने आई हैं बल्कि शुरुआत से ही यह सारे देश इजराइल के दुश्मन के तौर पर उसके लिए मुसीबतें पैदा करते रहे हैं. अपने दुश्मनों से इजराइल अपनी सीमाओं को सील कर चुका है तथा आधुनिक हथियारों, एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम जैसी प्रणालियों का सीमाओं पर बखूबी इस्तेमाल कर अपने आपको सभी तरह की मुसीबतों से बचाता आया है.
पर कल रात आई एक खबर ने सभी को हिला कर रख दिया है कल रात (भारतीय समय के अनुसार) अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के प्रयासों के चलते पश्चिमी एशिया के दो धुर विरोधी देश संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और इजरालय में शांति समझौता हुआ है. इसके साथ ही इजराइल ने वेस्ट बैंक पर कब्जा करने की अपनी योजना को टाल दिया है. शांति समझौते के साथ ही इजरायल और यूएई वर्षों से जारी दुश्मनी अब खत्म हो चुकी है.
क्या पश्चिमी एशिया में शांति कायम कर पाएगी यह डील?
यह कहना फिलहाल तो सही नहीं होगा कि इस समझौते से पश्चिमी एशिया में शांति का माहौल होगा परंतु विशेषज्ञों की माने तो यूएई और इजरायल के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित होना, दूतावास बनाया जाना और व्यापार की सुविधा शुरू करना एक महत्वपूर्ण कदम है. इसके साथ ही विशेषज्ञों ने कहा कि यह भी एक बड़ा सवाल है कि क्या इस समझौते में शामिल सभी वादों को पूरा किया जाएगा भारतीय ट्रंप के आवाहन पर यूएई की तरह पश्चिम एशिया (West Asia) के अन्य देश भी शांति स्थापित करने के लिए आगे बढ़ेंगे. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस डील के बाद यूएई को इजरायल से आर्थिक, सुरक्षा और साइंस के क्षेत्र में बड़ा फायदा हो सकता है. आपको बता दें कि वर्तमान स्थितियों में इजराइल और यूएई दोनों ही इस समझौते के बाद अपने दुश्मन ईरान (Iran) की ताकत जो कि चीन (China) की मदद से बढ़ती ही जा रही है, को भी संभाल पाने में कामयाब होंगे. हालांकि इस समझौते से फलस्तीन को निराशा ही हाथ लगी है क्योंकि उसे यह महसूस हो रहा है कि वह एक बार फिर से दुनिया में अलग-थलग हो रहा है. गौरतलब है कि इससे पहले राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के प्रशासन ने कहा था कि यरूशलम में शांति का रास्ता बगदाद से होकर जाता है.
फलस्तीन ने जताई नाराजगी !
इजराइल और यूएई के बीच में बीच हुए शांति समझौते पर फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास (Mehmood Abbas) के प्रवक्ता ने कहा कि यह डील उनके साथ एक ‘धोखा’ है. फलस्तीन ने अपना विरोध जताने के लिए यूएई से अपना राजदूत भी वापस बुला लिया है. गौरतलब है कि 1948 में अपनी स्वतंत्रता के बाद इजरायल की यह अरब देशों के साथ तीसरी डील है. इससे पहले इजरायल मिस्र और जॉर्डन (Jordan) के साथ भी समझौता कर चुका है.
इस समझौते पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्या कहा?
इस समझौते के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि दोनों ही देशों ने इसे ऐतिहासिक समझौता और शांति की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. अभी तक अब तक इजराइल को किसी भी इस्लामिक देश के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और अबूधाबी (Abudhabi) के क्राउन प्रिंस मोहम्मद अल नहयान के बीच हुए इस समझते को ‘एक वास्तविक ऐतिहासिक मौका’ करार दिया है. राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, “अब रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल गई है। मैं आशा करता हूं कि और ज्यादा अरब और मुस्लिम देश यूएई के रास्ते पर चलेंगे।’
हालांकि ईरान को लेकर खाड़ी के कई देश जैसे सऊदी अरब, यूएई इजरायल के साथ गैर आधिकारिक संपर्क में बने रहते हैं.” उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ सप्ताह में वे इस समझौते व्हाइट हाउस में हस्ताक्षर करेंगे. आपको बता दें कि इन दोनों देशों के बीच हुए शांति समझौते को लेकर अमेरिका में भी खूब चर्चा है. कई विश्लेषकों का मानना है कि इस डील से चुनावी बेला में ट्रंप को विदेश नीति के मोर्चे पर जीत मिली है. राष्ट्रपति ट्रंप जोकि अमेरिका को आर्थिक भूचाल से बचा पाने में असफल रहे वे इस डील के सहारे अमेरिकी लोगों तक अपना संदेश पहुंचा पाने में सफल हुए हैं.
इजराइल ने क्या कहा?
इजराइल और यूएई के बीच हुए शांति समझौते के बाद इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कहा कि उन्होंने वेस्ट बैंक पर कब्जे की योजना को कुछ समय के लिए टाल दिया है लेकिन अभी भी इजराइल ने इसे छोड़ा नहीं है. इस पर अमेरिका से लगातार संपर्क बना हुआ है. उन्होंने कहा, ‘मैंने जुडेआ और समरिया के ऊपर स्वामित्व को छोड़ा नहीं है.”
इजराइल के इस अतिक्रमण के बाद वेस्ट बैंक का कुछ हिस्सा आधिकारिक रूप से उसका हिस्सा हो जाएगा.
इस समझौते के बाद इजराइल ने कहा है कि वह यूएई की कोरोना वैक्सीन बनाने में मदद करेगा और इसके अलावा ऊर्जा, पानी, पर्यावरण संरक्षण और कई अन्य क्षेत्रों में भी सहयोग करेगा. इतना ही नहीं दोनों देश अबुधाबी से तेल अवीव तक फ्लाइट की शुरुआत भी करेंगे जिससे यूएई के मुसलमान यरुशलम के ओल्ड सिटी में अल-अक्सा मस्जिद जा सकेंगे. फैसले के बाद ना केवल रात पति ट्रंप बल्कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू को भी फायदा होगा. आपको बता दें कि नेतन्याहू इन दिनों अपने देश में भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण निशाने पर है. दोनों देशों के बीच इस ऐतिहासिक शांति समझौते से दुनियाभर के मुस्लिम देशों में न केवल इजरायल की स्वीकार्यता बढ़ेगी, बल्कि, इजरायल की सुरक्षा और स्थिरता को भी इससे लाभ पहुंचेगा.
भारत को फायदा!
शांति समझौते से भारत को भी लाभ होगा. सूत्रों की मानें तो भारत सरकार इस कदम का स्वागत कर सकती है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का यूएई के प्रिंस और प्रधानमंत्री नेतनयाहू से अच्छा याराना है और इस डील से भारत को यकीनन लाभ होगा. एक ओर जहां ईरान इस समझौते से घबराया है तो वहीं चीन को भी इस डील से ज्यादा खुशी नहीं हुई होगी क्योंकि पश्चिम एशिया के देशों में उसकी मजबूत होती पकड़ अब कमजोर हो गई है. ईरान और पाकिस्तान के लिए यह डील किसी सदमे से कम नहीं है क्योंकि ईरान और पाकिस्तान ने सीधे तौर पर इजरायल को न तो मान्यता दी है और न ही कोई राजनयिक संबंध रखे हैं.