Swami Vivekananda Jayanti 2022 : आज संपूर्ण देश राष्ट्रीय युवा दिवस (National youth Day) मना रहा है. इस मौके पर सिर्फ स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर देने से बात नहीं बनेगी, बल्कि हमें उनके दर्शन को भी समझना और आत्मसात करना होगा. स्वामी विवेकानंद ने मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं पर गहरा चिंतन किया था. उनके चिंतन के क्षेत्र धर्म, दर्शन, सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था, शिक्षा प्रणाली, महिलाओं की स्थिति और राष्ट्र का सम्मान आदि थे. विभिन्न समस्याओं पर उनके विचारों ने राष्ट्र को एक नई दिशा दी है. उनके अनुसार शिक्षा आंतरिक आत्म की खोज का जरिया है.

शिक्षा मानव जीवन की इस सच्चाई को महसूस करने का माध्यम है कि हम सभी एक ही भगवान के अंश हैं. वह शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व के व्यापक विकास में विश्वास करते थे. उनका मानना था कि पूर्णता पहले से ही मनुष्य में निहित है. शिक्षा उसी की अभिव्यक्ति है. दूसरे शब्दों में कहें तो सब ज्ञान मनुष्य में पहले से निहित हैं. कोई ज्ञान बाहर से उसमें नहीं आता. शिक्षा मनुष्य को इससे परिचित कराती है और इसको उभारती है.

स्वामी विवेकानंद ब्रिटिश शासन के तहत प्रचलित शिक्षा प्रणाली से पूरी तरह से असंतुष्ट थे. वह शिक्षण की भारतीय पद्धति की वकालत करते थे. उन्होंने घोषणा की थी कि हमारे देश की संपूर्ण शिक्षा हमारे अपने हाथों में होनी चाहिए. यह राष्ट्रीय तर्ज पर और राष्ट्रीय सरोकारों के माध्यम से जहां तक संभव हो, होनी चाहिए. वह शिक्षा के ढांचे को इस तरह से डिजाइन किए जाने के पक्ष में थे कि व्यक्ति को यह अहसास हो कि उसमें अनंत ज्ञान और शक्ति का निवास है तथा शिक्षा उस तक पहुंचने का साधन है.

स्वामी विवेकानंद भारत में महिलाओं की दयनीय स्थिति से निराश रहते थे. उन्होंने मनुस्मृति से उद्धरण दिया कि जहां स्त्रियों का आदर होता है, वहां देवता प्रसन्न होते हैं. और जहां वे प्रसन्न नहीं हैं, वहां सभी प्रयास शून्य हो जाते हैं. जिस परिवार या देश में महिलाएं सुखी नहीं हैं, वे कभी उठ नहीं सकते. वह दृढ़ता से अनुशंसा करते थे कि बेटियों को बेटों के रूप में पाला जाना चाहिए. वे माता सीता को भारतीय नारी के लिए आदर्श मानते थे. उन्होंने टिप्पणी की, कि महिलाओं के आधुनिकीकरण का कोई भी प्रयास जो महिलाओं को सीता के आदर्श से दूर ले जाता है, निंदनीय है और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए.

स्वामी विवेकानंद एक आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध साधु थे. वे एक महान वेदांतवादी थे, जो वेदों के विचारों का प्रचार करते थे. उनके विचार मानवता की भावना को प्रोत्साहित करते हैं और वे सभी समय के लिए विश्वसनीय हैं. पश्चिमी देशों में हिंदू धर्म के प्रचार से पहले उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी और बंगाल से पंजाब तक भारत का दौरा किया, क्योंकि वह कहते थे कि जब तक मैं खुद अपने देश के लोगों को नहीं देखूंगा तो मैं दुनिया को उनके बारे में कैसे बताऊंगा?

देश को आज उनकी शिक्षाओं की सबसे ज्यादा जरूरत है. आजादी के बाद से हमारे देश ने विभिन्न क्षेत्र में अपार प्रगति की है. कई क्षेत्रों में देश आत्मनिर्भर हो गया है, लेकिन दुख की बात हम अभी भी जाति और धर्म के नाम पर बंटे हुए हैं. देश और मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों से बेखबर अधिकांश युवा अपने मोबाइल फोन (Mobile phone) पर दो जीबी (2GB) डाटा के प्रतिदिन के कोटे का उपयोग करने में मग्न रहते देखे जाते हैं. स्वामी विवेकानंद ने ओसाका (जापान) से देश के युवाओं को एक संदेश भेजा था- आइए मानव बनें। वह कहते थे कि युवाओं की मांसपेशियां लोहे और नसें स्टील की तरह होनी चाहिए.

आज हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की अनुशंसाओं को देश में क्रियान्वित करने की ओर अग्रसर हैं, ताकि युवाओं में आत्मनिर्भरता, संवैधानिक मूल्यों को प्रतिस्थापित किया जा सके. वहीं स्वामी विवेकानंद स्वयं ही भारत के युवाओं के लिए संदेश हैं. उनके उपदेश सदैव प्रासंगिक रहेंगे.

स्वामी विवेकानंद शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व के व्यापक विकास में विश्वास करते थे. उनके अनुसार शिक्षा मानव जीवन की इस सच्चाई को महसूस करने का माध्यम है कि हम सभी एक ही भगवान के अंश हैं
असिस्टेंट प्रोफेसर, शिक्षा विभाग, भारतीय महाविद्यालय, फरुखाबाद

लेख – टीम वाच इंडिया नाउ

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